2019 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को फिर से खड़ा करने की है. जिसके चलते प्रदेश राजधानी लखनऊ में कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की बीच बैठकों का दौर लगातार जारी है.
प्रियंका गांधी को पार्टी महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपें जाने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नई उर्जा का संचार हुआ है. इसके साथ ही पार्टी प्रदेश के छोटे- छोटे दलों को भी साधने की कोशिश में जुटी हुई है. हाल ही में कांग्रेस ने महान दल के साल समझौता करते हुए कांग्रेस में शामिल किया है.
वहीं अगर 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डालें तो मोदी लहर में कांग्रेस का बंटाधार हो गया था. देश की सत्ता पर काबिज कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की सीटों पर सिमट कर रह गयी थी. जहां 18 फीसदी वोट के साथ कांग्रेस 2009 के लोकसभा चुनावों में 21 सीटें जीतने में सफल हुई थी. तो वहीं 2014 में यह आंकड़ा घटकर 7.5 फीसदी तक जा पहुंचा.जिसका असर पार्टी की साख पर पड़ा और पार्टी के कई नेता कांग्रेस का दामन छोड़ मोदी लहर में डुबकी लगाने लगे. जिससे असर कार्यकर्ताओं पर पड़ा. नतीजन न संगठन स्तर पर न सिर्फ कांग्रेस कमजोर हुई बल्कि ब्लॉक और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की कमी से जूझती नज़र आई. लेकिन अबआगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी ने कमर कस ली है. तो वहीं प्रियंका गाँधी के आने से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में एक नई उम्मीद जगी है. जिसकी बानगी प्रियंका गांधी के लखनऊ रोडशो के दौरान देखने को मिली थी. जब हजारो की संख्या में कांग्रेसकार्यकर्ता सडकों पर उतर आये थे.
प्रियंका गांधी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी कांग्रेस के सामने काफी चुनौतियाँ हैं. एक तो पार्टी का मुकाबला सीधे तौर पर बीजेपी के साथ है तो वहीं अब कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों मेंसपा- बसपा गठबंधन से भी पार पाना होगा. जिसके चलते कांग्रेस ने इस संगठन स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं. कांग्रेस की तरफ से नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. साथ ही पार्टी छोड़ चुके नेताओं से भी संपर्क साधा जा रहा है. जिससे उन्हें एक बार फिर पार्टी से जोड़ा जा सके.इसकी जिम्मेदारी बाजीराव खाड़े और सचिन नायक को दी गई है. जो लखनऊ में नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं. प्रियंका की अगुवाई में चुनाव लड़ने जा रही कांग्रेस का ध्यान उन सीटों पर ज्यादा है जहां कांग्रेस की अच्छी खासी पैठ मानी जाती है. जिसमें कुछ ब्राम्हण बहुल आबादी वाली सीटें भी शामिल हैं.